न्यूज 21भारत नई दिल्ली
सुभाष चंद्र बोस, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अद्वितीय नायक, जिनका नाम इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस ने अपने जीवन में एक ऐसा संघर्ष किया, जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में स्वतंत्रता की प्रतीक बन गया।
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक और कोलकाता में प्राप्त की। बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा में उच्च स्थान प्राप्त किया। हालांकि, उन्होंने गुलामी की मानसिकता वाली नौकरी को ठुकरा दिया, क्योंकि उनका दिल हमेशा अपने देश की स्वतंत्रता की ओर था।
1938 में सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन उनका दृष्टिकोण गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन से मेल नहीं खाता था। इसके कारण वह कांग्रेस से अलग हो गए और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल संघर्ष और बलिदान से मिल सकती है, न कि केवल अहिंसा के माध्यम से।
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए जर्मनी और जापान से समर्थन प्राप्त किया और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आज़ाद हिंद फौज) की स्थापना की। उनके प्रसिद्ध नारे “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” ने भारतीयों में स्वतंत्रता की ज्वाला को प्रज्वलित किया। उनकी सेना ने कई महत्वपूर्ण लड़ाइयों में हिस्सा लिया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की खबर आई, लेकिन उनके निधन के कारणों पर आज भी एक रहस्य बना हुआ है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपूरणीय था।
सुभाष चंद्र बोस का जीवन साहस, बलिदान और दृढ़ता का प्रतीक है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अभूतपूर्व था। उनकी जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके संघर्ष और बलिदान को हमेशा याद रखेंगे और देश के प्रति समर्पण से आगे बढ़ेंगे।
ब्यूरो रिपोर्ट

Author: Adv Vinod Kumar
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