न्यूज 21भारत अमेठी
जिंदा व्यक्ति को अभिलेखों में दिखाया मृतक, लेखपाल की भूमिका संदेह के घेरे में
अमेठी। राजस्व विभाग के कारनामे हमेशा से निराले रहते हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण अमेठी में देखने को मिला। जहां जीवित व्यक्ति को मुर्दा दिखाकर उसके नाम की भूमि को दूसरे के नाम अंकित कर दिया ।जिसकी शिकायत पीड़ित ने उच्च अधिकारियों से की। लेकिन अभी तक शिकायत का निस्तारण नहीं हो सका और ना ही मृतक व्यक्ति को राजस्व अभिलेखों में जिंदा किया गया ।
प्रकरण अमेठी जनपद के पीपरपुर थाना क्षेत्र के मल्लेपुर मजरे भोजपुर गाँव का है। मल्लेपुर निवासी राम जियावन पुत्र राम अंजोर ने उप जिलाधिकारी अमेठी को दिए गए शिकायती पत्र में आरोप लगाया है कि उनकी जमीन की वरासत गांव के ही दूसरे व्यक्ति को कर दी गई और उन्हें राजस्व अभिलेखों में मृतक दिखा दिया गया। राम जियावन गरीब अनपढ़ 80 वर्षीय वृद्ध नि:सन्तान व्यक्ति है जो मेहनत मजदूरी करने के लिए अधिकांश समय दूसरे शहर में रोजी रोटी के लिए चले गए थे । पीड़ित की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी चंद्रावती घर पर ही निवास करती थी ।उनके नाम भूमि गाटा संख्या 296 / 0.2040 हेक्टेयर ,गाटा संख्या 126/0.1520 हेक्टर भोजपुर का बैनामा पीड़ित ने अपनी पत्नी चंद्रावती के नाम से खरीदा था ।
पत्नी की मृत्यु व उनकी अनुपस्थिति का नाजायज लाभ उठाते हुए गांव के स्वामी चरण पुत्र बाबूलाल द्वारा फर्जी प्रमाण पत्रों को तैयार करके उक्त जमीन अपने नाम वरासत करा लिया। इस काम में स्वामी चरण के परिजन उनके पुत्र , पुत्री, व पत्नी जो कि उक्त स्वामी चरण की खड्यंत्र के भागीदारी बने थे। उनके द्वारा योजनाबद्ध तरीके से पीड़ित के पत्नी के नाम अंकित भूमिधारी जमीन का वरासत अपने पक्ष में करवा लिया गया ।पीड़ित को जब गांव वासियों के माध्यम से इसकी जानकारी प्राप्त हुई तो पीड़ित ने हल्का लेखपाल व कानून को प्रकरण के विषय में जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 के तहत वाद योजित किया ।जिसके क्रम में पीड़ित द्वारा वाद तहसीलदार अमेठी के यहां राम जियावन बनाम चंद्रावती वाद टी20404710506976 योजित किया गया ।जिसमें न्यायालय द्वारा साक्ष्य के आधार पर सुनवाई करते हुए अपने आदेश में बाद उक्त भूमि के क्रय विक्रय पर रोक लगा दी गई।लेकिन अभी तक त्रुटिपूर्ण आदेश को सही नहीं किया गया ।पीड़ित ने वरासत आदेश को सही करने के लिए उप जिलाधिकारी अमेठी के यहां प्रार्थना पत्र दिया है। पीड़ित के अधिवक्ता व अन्य जानकारों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हल्का लेखपाल वरासत की जांच करने मौके पर नहीं जाते। जिसके कारण जिंदा व्यक्ति को मुर्दा दिखा दिया जाता है और व्यक्ति अपने आप को जिंदा प्रस्तुत करने के लिए तहसील, कचहरी, दीवानी के चक्कर लगाता हुआ थक हार कर निराशा के गर्त में चला जाता है ।अधिकांश मामलों में पीड़ित की मौत भी हो जाती है लेकिन हल्का लेखपाल की गलती का जिम्मेदार कौन है इस पर कोई भी प्रशासनिक अधिकारी बोलने को तैयार नहीं होता और ना ही हल्का लेखपाल व कानूनगो की दंडित करने के लिए कोई आदेश पारित करता है जिससे किसी दूसरे के साथ ऐसी घटनाएं ना घटित हो। कोई नया मामला नहीं है हर 10 गांव के बीच में अक्सर ऐसे आदेश जिंदा को मुर्दा दिखाकर हल्का लेखपाल को हमारा करके कर दिए जाते हैं जिसका खामियाजा पीड़ित व्यक्ति को भुगतना पड़ता है। अधिवक्ता राजेंद्र कुमार यादव का कहना है कि ऐसे मामलों में मुकदमे व अन्य खर्च की भरपाई हल्का लेखपाल के वेतन से की जानी चाहिए ।जिससे लोगों के सामने एक नजीर प्रस्तुत हो और हल्का लेखपाल बिना जांच के गलत रिपोर्ट न लगा सके।
करुणा शंकर वर्मा की रिपोर्ट

Author: Adv Vinod Kumar
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